Tuesday, July 5, 2011

कई बार

कई चीजे समझ को नहीं अपनाती
कई चीजों को हम समझना नहीं चाहते
कई बार सच -झूठ का अंतर मुश्किल होता है
कई बार बार -बार कहा गया झूठ मेहनतकश सच होता है
कई बार विचार मजबूरन अपनाने होते है
कई विचारो के प्रेम मे हृदय रोते है
कई बरसातों से दो सोच मिल जाती है
कई बरसातों से धरती तक हिल जाती है
कई गीत जीत का राग होते है
कई गीतों को गा कर मजबूर दिल रोते है
कई होठ शब्दों को श्हेद मे घोल देते है
कई होठ बंद रहकर भी बोल देते है
कई आँखे प्रेम ,झिझक ,गुस्सा ,शरारत दिखाती है
कई आँखे अपनों की बेइजती पर भी झुक जाती है
कई जानवर प्यार ,अपनेपन के भूके होते है
कई जानवर जिन्दगी को अपने पंजो मे पिरोते है
कई हवाए दिल बदल कर खुशियाँ लाती है
कई हवाए सोच को झुंझला जाती है
ये कई शब्द अपने नियंत्रण मे नहीं रहता
तो कई को छोड़ हर बार को याद करो
जो बदल सकते है उसे बदल बनो विजेता
और कई बार को याद कर हर बार से शुरुआत करो |

Sunday, May 22, 2011

be specific

शायद रात रात ही रहे उसी मे उसकी खूबसूरती है
शायद तितर के जीवन का अंत लो से खिलवाड़ मे है
शायद सपनो की सही जगह वास्तविकता के पर ही है
शायद आँखों को दर्द का सच्चा दोस्त कहना सही है
शायद हाथों की लकीरों का वक़्त संग पक्का होना सही है
शायद अपनों के लिए अपनी इच्छाओ का त्याग सही है
शायद इच्छाओ और उम्मीदों मे दूरी का भाव सही है
शायद त्योहारों मे खुशियाँ बंटाना सही है
शायद बंद कमरों से जिन्दगी को जानना सही है
शायद दिल का धड़कना और खून का बहना सही है
शायद आँखों से हँसना और होठो का रोना सही है
शायद जानते हुए किसी की बदनसीबी को गले लगाना सही है
शायद खुश रहने के लिये पापों को भूल जाना सही है
शायद राम सही शायद रहीम सही है
शायद बूढी माँ की बाहों को सहारा सही है
शायद कलम सही शायद हथियार सही है
शायद सिर्फ आँखों की आँखों से मुलाकात सही है
शायद सहारा , बेनामी मुलाकात और तस्सल्ली सही है
शायद अपने आप मे मसरूफियत की शाम सही है
शायद बच्चो की मौत और बुजुर्गो का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना पाना सही है
शायद किताबो और भूख में से एक चून पाना सही है
शायद घरेलू हिंसा और घर के कोनों का सूनापन सही है
शायद इसमें पीसी खुशियाँ और बच्चों का बचपन सही है

सही है-------सही है ----------सही है !!!!!!!!!!!

शायद ------एक विक्लांग उदाहरण की बैसाखी है
और
दूसरो की परेशानी और दुःख हमारे लिए मन की मुस्कान और खुबसूरत झांकी है |

Sunday, August 15, 2010

ख्याल

तुम............... पूरा हो गया सुनेहरापन
एहसास ...............भूल गए हर गम
वो हवाओ मै एहसास तुम्हारी हर बात
मुझे देख तुम्हारी बातों मै वो बचपन
गहरी आखों मे लहराती मुस्कुराहट
वो बेमान कदमो की शराफत
वो रोना लोगों पर चिल्लाना
मेरी बातों पर मुस्कुराना
तुम्हारा दोस्तों संग चुटकिया करना
वो बातों मे कहें शब्दों को छुपाना
मेरी तुम्हारे लिये चिंता को आजमाना
मेरी शर्ट को सुबाह - सुबाह गोर से पढना
मेरे मुड को कल्पनाओ मे गड़ना
वो काम के लिये तुम्हारी तड़प
बातों- बातों मे किसी से हुई झड़प
वो किसी को दिलासा ,खुद परेशान होना
दूसरो की ख़ुशी मे खुश तो कभी झूठा तुम्हारा रोना
वो तुम्हारा -हमारा आमने -सामने आना
वो मेरा लेफ्ट तो तुम्हारा दाये मुड जाना
वो आखरी सीढ़ी से किसी को ढूँढना
लोगों को दिखाना की ये सब साधारण है
एकांत मे ढूँढना की इस मुस्कुराहट का क्या कारण है

पर कभी

ये साधारण ही लगता है
कभी- कभी आखों मे सूनापन झलकता है
दिमाग का हावी होना दिल पर
दिल को खटकता है
दिनों तक न हुई बात
खामोश मुलाकात
कुछ छूट जाने का डर
इच्छाओ के डूब जाने का डर
कभी- कभी अकाल सा महसूस होता है
जैसे मानो कोई भी नहीं
पर कुछ तो है जो आखे बंद करने की इजाजत नहीं देता
क्योकि एक सुन्दर ख्याल के साहारे भी वक़्त कट जाता है
और बिन कहें भी खयालो को पढ़ा और समझाया जाता है

Saturday, July 31, 2010

याद नहीं कब हँसे थे दिल से

याद नहीं कब हँसे दिल से
हमें याद नहीं कब हँसे थे दिल से

जिन्दगी काफी तेज हो गई
इच्छाए अपनी चुपचाप सो गई
एक-एक पल जाने किस सोच पर छुटा
जिंदगी गिरती बूंद हो गई !

डर लगता है हँसने रोने से
सब कुछ पाने और कुछ खोने से
उब गए सुनी आखों से
याद करो कब हँसे थे दिल से

सम्मान नहीं अब इन आखों में
एहसास नहीं अपनी बातो में
एक मन डरपोक मुझे कहता है
छोटे मन में सिर्फ डर रहता है

हर एक दिखता है इच्छाओ का हत्तेयारा
ना शत्रु ना कोई लगता है प्यारा
दुविधा है इच्छाए है राख या मोती
भूल गया इच्छाए क्या है होती
काले पढ़ गए सपने पलकों के
याद नहीं कब हँसे थे दिल से
याद नहीं कब हँसे थे दिल से !!

क्या नाम जरुरी है

क्या नाम जरुरी है
राहगेरो की मुस्कराहट पर
बच्चे को देख शीतल भाव पर
चिड़ेयो की चेहचाहट पर मिले सुकून पर
क्या रिश्तो की छाप जरुरी है

अगर किसी का मुख चिंताए भुला दे
किसी के शब्द मुस्कुराहट ला दे
किसी की याद मानसिक तनाव की हानि हो
किसी की मुस्कुराहट तीज- दिवाली हो
तो क्या वो दोस्त ,भाई ,प्रेमी होना जरुरी है
सांसारिक छाप के बीना क्या मुस्कुराहट पाप है
मुस्कुराहट के बीना जीना भी मज़बूरी है
क्या नाम जरुरी है
क्या नाम जरुरी है !!

Thursday, August 20, 2009

संशय

वेध्यार्थी एक तपस्वी है
कभी कभी मार्ग से भटक
सही ग़लत मे उलझ कर रह जाता है
पूछता है बताता है
हर रोज अपनी ही एक कहानी बनाकर
उस पर सवाल उठाता है
खुश होता है तडपता है
हँसते हुए रोता है
कुछ क्षद व्यव्हार पागल जेसा होता है
वेदाम्बना यह है की पागलपन का उस पागल को भी पता होता है
हर तथ्य मे संशय होता है
हर उतर मे एक प्रशन होता है
रात चिंता और दिन प्रयास होते है
हर प्रयास मे चिंता के भाव होते है
और चिंता से प्रयास उदास होते है
वेद्यार्थी उन क्षदो मे समझता नही
की कोण सा रास्ता मंजिल की और है
किस रास्ते की किस्मत रात
और किस मंजिल के रास्तो पर भोर है
पर सच्चा वेद्यार्थी इस च्करावयूओ को तोड़ता है
और भ्रम के सागर से पार सरस्वती से मार्गो को जोड़ता है !!

Wednesday, August 19, 2009

अपराधिक विचारधारा

उठो चलो खड़े हो जाओ कहना आसान है
जिंदगी की दुकान मे सुख मैन्यु पर दुःख दर्द सामान है

शुरूआती सहारा नही देता कोई किसी को
राह के प्रथम पग को देख कहते है की ग़लत इंसान है

क्यो शब्दों को बचा कर रखते है
क्यों संस्कारो को चुप रहने या बड़बोले पन से परखते है
क्यों नही सोचते है अपने दो शब्द
लोगो को सही दिशा दिखा सकते है
किसी की गलती की समीक्षा
किसी के अपराध पर मजा
जो समझते हर अपराधी को पिता , भाई जैसा इंसान नही
वो विचारधारा के आधार पर अपराधी होने से डरते है!!

!!आख़िर क्यों लोग सरस्वती को सिर्फ़ अपनों के बीच रखते है!!