Saturday, July 31, 2010

याद नहीं कब हँसे थे दिल से

याद नहीं कब हँसे दिल से
हमें याद नहीं कब हँसे थे दिल से

जिन्दगी काफी तेज हो गई
इच्छाए अपनी चुपचाप सो गई
एक-एक पल जाने किस सोच पर छुटा
जिंदगी गिरती बूंद हो गई !

डर लगता है हँसने रोने से
सब कुछ पाने और कुछ खोने से
उब गए सुनी आखों से
याद करो कब हँसे थे दिल से

सम्मान नहीं अब इन आखों में
एहसास नहीं अपनी बातो में
एक मन डरपोक मुझे कहता है
छोटे मन में सिर्फ डर रहता है

हर एक दिखता है इच्छाओ का हत्तेयारा
ना शत्रु ना कोई लगता है प्यारा
दुविधा है इच्छाए है राख या मोती
भूल गया इच्छाए क्या है होती
काले पढ़ गए सपने पलकों के
याद नहीं कब हँसे थे दिल से
याद नहीं कब हँसे थे दिल से !!

क्या नाम जरुरी है

क्या नाम जरुरी है
राहगेरो की मुस्कराहट पर
बच्चे को देख शीतल भाव पर
चिड़ेयो की चेहचाहट पर मिले सुकून पर
क्या रिश्तो की छाप जरुरी है

अगर किसी का मुख चिंताए भुला दे
किसी के शब्द मुस्कुराहट ला दे
किसी की याद मानसिक तनाव की हानि हो
किसी की मुस्कुराहट तीज- दिवाली हो
तो क्या वो दोस्त ,भाई ,प्रेमी होना जरुरी है
सांसारिक छाप के बीना क्या मुस्कुराहट पाप है
मुस्कुराहट के बीना जीना भी मज़बूरी है
क्या नाम जरुरी है
क्या नाम जरुरी है !!