वेध्यार्थी एक तपस्वी है
कभी कभी मार्ग से भटक
सही ग़लत मे उलझ कर रह जाता है
पूछता है बताता है
हर रोज अपनी ही एक कहानी बनाकर
उस पर सवाल उठाता है
खुश होता है तडपता है
हँसते हुए रोता है
कुछ क्षद व्यव्हार पागल जेसा होता है
वेदाम्बना यह है की पागलपन का उस पागल को भी पता होता है
हर तथ्य मे संशय होता है
हर उतर मे एक प्रशन होता है
रात चिंता और दिन प्रयास होते है
हर प्रयास मे चिंता के भाव होते है
और चिंता से प्रयास उदास होते है
वेद्यार्थी उन क्षदो मे समझता नही
की कोण सा रास्ता मंजिल की और है
किस रास्ते की किस्मत रात
और किस मंजिल के रास्तो पर भोर है
पर सच्चा वेद्यार्थी इस च्करावयूओ को तोड़ता है
और भ्रम के सागर से पार सरस्वती से मार्गो को जोड़ता है !!
Thursday, August 20, 2009
Wednesday, August 19, 2009
अपराधिक विचारधारा
उठो चलो खड़े हो जाओ कहना आसान है
जिंदगी की दुकान मे सुख मैन्यु पर दुःख दर्द सामान है
शुरूआती सहारा नही देता कोई किसी को
राह के प्रथम पग को देख कहते है की ग़लत इंसान है
क्यो शब्दों को बचा कर रखते है
क्यों संस्कारो को चुप रहने या बड़बोले पन से परखते है
क्यों नही सोचते है अपने दो शब्द
लोगो को सही दिशा दिखा सकते है
किसी की गलती की समीक्षा
किसी के अपराध पर मजा
जो समझते हर अपराधी को पिता , भाई जैसा इंसान नही
वो विचारधारा के आधार पर अपराधी होने से डरते है!!
!!आख़िर क्यों लोग सरस्वती को सिर्फ़ अपनों के बीच रखते है!!
जिंदगी की दुकान मे सुख मैन्यु पर दुःख दर्द सामान है
शुरूआती सहारा नही देता कोई किसी को
राह के प्रथम पग को देख कहते है की ग़लत इंसान है
क्यो शब्दों को बचा कर रखते है
क्यों संस्कारो को चुप रहने या बड़बोले पन से परखते है
क्यों नही सोचते है अपने दो शब्द
लोगो को सही दिशा दिखा सकते है
किसी की गलती की समीक्षा
किसी के अपराध पर मजा
जो समझते हर अपराधी को पिता , भाई जैसा इंसान नही
वो विचारधारा के आधार पर अपराधी होने से डरते है!!
!!आख़िर क्यों लोग सरस्वती को सिर्फ़ अपनों के बीच रखते है!!
Monday, August 17, 2009
अंधी दुनीया संग अँधा मन
रंगों की रंगीन मिजाजी
कभी कभी सूनापन याद दिलाती है
और शोर-शराब की शाम भी
रूह को बेरंग कर जाती है !
अगर बात मुझ से हट कर हम तक आए
तो जिंदगी कितनी आसान हो जाए
पर परन्तु ही रोशनी को निगल जाते है
पसंद पुच कर लोग लालच दिखाते है
एक से सो और सो से हजार हो जाते है
अरे हिमत तो यमराज की नही हाथ लगाने की
पर बुरे वक्त में अपनों के लिए हम बेचारे हो जाते है
आसानी से आसमान उठ सकता है
जमी पर खड़े हो अगर हम
कमर झुका कर झूठा ही खाना पड़ता है
तो फिर क्या कीडे और क्या हम !!
कभी कभी सूनापन याद दिलाती है
और शोर-शराब की शाम भी
रूह को बेरंग कर जाती है !
अगर बात मुझ से हट कर हम तक आए
तो जिंदगी कितनी आसान हो जाए
पर परन्तु ही रोशनी को निगल जाते है
पसंद पुच कर लोग लालच दिखाते है
एक से सो और सो से हजार हो जाते है
अरे हिमत तो यमराज की नही हाथ लगाने की
पर बुरे वक्त में अपनों के लिए हम बेचारे हो जाते है
आसानी से आसमान उठ सकता है
जमी पर खड़े हो अगर हम
कमर झुका कर झूठा ही खाना पड़ता है
तो फिर क्या कीडे और क्या हम !!
मायूसी
आज फिर स्याही बिछाई है , क्योकि किस्मत फिर कयामत बन आई है !
अगर बोझ दिल की जगह सर पर हो तो सही
अगर दिल दब जाए बोझ से तो बोघ जिंदगी नही लाशे ही उठाती है !
अब तो मोजो के नजदीक डर लगता है
पर दूर खड़ी जिंदगी इन्ही मोजो सी मोज उठती है !
जब तक रगों से रहे मिजाजे दोस्ताना सुकू देते है
और जब लगे हर रंग बदसूरत तो यही रंग खुशी के दिए बुघाते है मुस्कुराते है !
अगर बोझ दिल की जगह सर पर हो तो सही
अगर दिल दब जाए बोझ से तो बोघ जिंदगी नही लाशे ही उठाती है !
अब तो मोजो के नजदीक डर लगता है
पर दूर खड़ी जिंदगी इन्ही मोजो सी मोज उठती है !
जब तक रगों से रहे मिजाजे दोस्ताना सुकू देते है
और जब लगे हर रंग बदसूरत तो यही रंग खुशी के दिए बुघाते है मुस्कुराते है !
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