Sunday, May 22, 2011

be specific

शायद रात रात ही रहे उसी मे उसकी खूबसूरती है
शायद तितर के जीवन का अंत लो से खिलवाड़ मे है
शायद सपनो की सही जगह वास्तविकता के पर ही है
शायद आँखों को दर्द का सच्चा दोस्त कहना सही है
शायद हाथों की लकीरों का वक़्त संग पक्का होना सही है
शायद अपनों के लिए अपनी इच्छाओ का त्याग सही है
शायद इच्छाओ और उम्मीदों मे दूरी का भाव सही है
शायद त्योहारों मे खुशियाँ बंटाना सही है
शायद बंद कमरों से जिन्दगी को जानना सही है
शायद दिल का धड़कना और खून का बहना सही है
शायद आँखों से हँसना और होठो का रोना सही है
शायद जानते हुए किसी की बदनसीबी को गले लगाना सही है
शायद खुश रहने के लिये पापों को भूल जाना सही है
शायद राम सही शायद रहीम सही है
शायद बूढी माँ की बाहों को सहारा सही है
शायद कलम सही शायद हथियार सही है
शायद सिर्फ आँखों की आँखों से मुलाकात सही है
शायद सहारा , बेनामी मुलाकात और तस्सल्ली सही है
शायद अपने आप मे मसरूफियत की शाम सही है
शायद बच्चो की मौत और बुजुर्गो का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना पाना सही है
शायद किताबो और भूख में से एक चून पाना सही है
शायद घरेलू हिंसा और घर के कोनों का सूनापन सही है
शायद इसमें पीसी खुशियाँ और बच्चों का बचपन सही है

सही है-------सही है ----------सही है !!!!!!!!!!!

शायद ------एक विक्लांग उदाहरण की बैसाखी है
और
दूसरो की परेशानी और दुःख हमारे लिए मन की मुस्कान और खुबसूरत झांकी है |

1 comment:

M VERMA said...

सही है --- सही है
ये सब कुछ सही है