रंगों की रंगीन मिजाजी
कभी कभी सूनापन याद दिलाती है
और शोर-शराब की शाम भी
रूह को बेरंग कर जाती है !
अगर बात मुझ से हट कर हम तक आए
तो जिंदगी कितनी आसान हो जाए
पर परन्तु ही रोशनी को निगल जाते है
पसंद पुच कर लोग लालच दिखाते है
एक से सो और सो से हजार हो जाते है
अरे हिमत तो यमराज की नही हाथ लगाने की
पर बुरे वक्त में अपनों के लिए हम बेचारे हो जाते है
आसानी से आसमान उठ सकता है
जमी पर खड़े हो अगर हम
कमर झुका कर झूठा ही खाना पड़ता है
तो फिर क्या कीडे और क्या हम !!
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