Wednesday, August 19, 2009

अपराधिक विचारधारा

उठो चलो खड़े हो जाओ कहना आसान है
जिंदगी की दुकान मे सुख मैन्यु पर दुःख दर्द सामान है

शुरूआती सहारा नही देता कोई किसी को
राह के प्रथम पग को देख कहते है की ग़लत इंसान है

क्यो शब्दों को बचा कर रखते है
क्यों संस्कारो को चुप रहने या बड़बोले पन से परखते है
क्यों नही सोचते है अपने दो शब्द
लोगो को सही दिशा दिखा सकते है
किसी की गलती की समीक्षा
किसी के अपराध पर मजा
जो समझते हर अपराधी को पिता , भाई जैसा इंसान नही
वो विचारधारा के आधार पर अपराधी होने से डरते है!!

!!आख़िर क्यों लोग सरस्वती को सिर्फ़ अपनों के बीच रखते है!!

1 comment:

M VERMA said...

यह दुनिया है यहाँ ऐसे ही होता है
अच्छा लिखा है.