वेध्यार्थी एक तपस्वी है
कभी कभी मार्ग से भटक
सही ग़लत मे उलझ कर रह जाता है
पूछता है बताता है
हर रोज अपनी ही एक कहानी बनाकर
उस पर सवाल उठाता है
खुश होता है तडपता है
हँसते हुए रोता है
कुछ क्षद व्यव्हार पागल जेसा होता है
वेदाम्बना यह है की पागलपन का उस पागल को भी पता होता है
हर तथ्य मे संशय होता है
हर उतर मे एक प्रशन होता है
रात चिंता और दिन प्रयास होते है
हर प्रयास मे चिंता के भाव होते है
और चिंता से प्रयास उदास होते है
वेद्यार्थी उन क्षदो मे समझता नही
की कोण सा रास्ता मंजिल की और है
किस रास्ते की किस्मत रात
और किस मंजिल के रास्तो पर भोर है
पर सच्चा वेद्यार्थी इस च्करावयूओ को तोड़ता है
और भ्रम के सागर से पार सरस्वती से मार्गो को जोड़ता है !!
3 comments:
अच्छी रचना पर वर्तनी सुधार आवश्यक है
वर्मा जी की टिप्पणी पर विचार करें .गूगल transliteration का प्रयोग करते हों तो उसमे जाकर वर्तनी सुधार की विधियाँ पायेंगे .शुरू में सभी को ये दिक्कतें आती हैं .
आपकी सोच और कविता में संभावनाएं हैं ,और तराशें .
हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत करता हूँ .सार्थक लेखन और सामूहिक मंच पर आपसी सोच और विमर्श का आदान प्रदान की स्वस्थ्य परंपरा ही हम सबका उद्देस हो तथा मत विभिन्नता में भी शालीनता हम बनाये रख सकें यही प्रयास भी .शुभकामनाओं सहित -राज सिंह
पुनश्च : यदि आपने वर्ड वेरिफिकेसन लगाया हो तो उसकी उपयोगिता कुछ खास नहीं है ,हटा दें .हाँ यदि सोचते हों की टिप्पणियों में अभद्रता पाई जा सकती है तो मोदेरेसन का इस्तेमाल कर सकते हैं .
पर सच्चा वेद्यार्थी इस च्करावयूओ को तोड़ता है
और भ्रम के सागर से पार सरस्वती से मार्गो को जोड़ता है !!
I can quite see a true vedaarthi in you.
beautiful creation.
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